मजदूर दिवस के मौके पर पुरे देशवासियों को बधाई – कॉम. शिव गोपाल मिश्र
” मजदूर दिवस ” 1 मई को पूरे विश्व का कामगार वर्ष 1867मे शिकागो मे काम के घंटे निश्चित किये जाने (अधिकतम 8घंटे ) के लिए विशाल मजदूर रैली के साथ हड़ताल की घोषणा की। मजदूर आन्दोलन के इतिहास मे 1 मई, 3मई एवं 6मई 1867को बर्बर पुलिस ने गोलियां चलाई और अनेकों मजदूर शहीद हुए। वर्ष 1869की 1 मई को दुनियां के मजदूरों ने एकत्र होकर शहीद साथियों के खून से लथपथ कमीज़ो को लहराते हुए उन्हें याद कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रतिवर्ष 1 मई को मजदूर दिवस की घोषणा की ।दुनियां का कामगार तब से इस दिन को शिद्दत के साथ अपने शहीदों को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता है,जिनकी शहादत ने काम के अधिकतम 8घंटे, साप्ताहिक अवकाश और मानवीय मूल्यों को आधार दिया।साथ ही संगठित शक्ति का परिचय कराया । विगत 154 वर्षों के अन्तराल मे संगठित शक्ति ने अनेकों उपलब्धियां हासिल की जो आज का कामगार अपना अधिकार मानता है। अपने देश मे विगत 30 वर्षों ( 1991-2020 ) या स्पष्ट कहा जाय तो आजादी के बाद वर्ष 1948 से आजतक संगठित शक्ति को राजनीतिक पार्टियों के आधार पर, निजहित, जातिहित,वर्गहित आदि-आदि के नाम पर हम बचते रहे हैं और परिणाम सामने है ।
अगर एक मई 1886 को मजदूर आन्दोलन की अमर गाथा के रूप में याद किया जाता है तो निसंदेह एक मई 2020 को इसलिए याद किया जाएगा क्योंकि पुरे संसार का श्रमिक वर्ग आज मजदूर दिवस को उन हालतों में मना रहा है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो। पुरे संसार की मानवता कोरोना रूपी भयंकर त्रासदी का सामना कर रही है और इस विपदा का विपरीत और बुरा प्रभाव जितना श्रमिक वर्ग पर पड़ रहा है और या फिर पड़ने वाला है उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है, वर्तमान और भविष्य में पूंजीवाद और शोषण की दोहरी मार को झेलने के लिए संगठित होकर लड़ने की प्रेरणा देने वाला दिन अगर है तो वह आज ही का दिन है। कोरोना काल में अगर कोई विस्थापित होकर भूखा प्यासा हजारों किलोमीटर पैदल चला है तो वह श्रमिक ही है।
अगर एक मई 1886 को मजदूर आन्दोलन की अमर गाथा के रूप में याद किया जाता है तो निसंदेह एक मई 2020 को इसलिए याद किया जाएगा क्योंकि पुरे संसार का श्रमिक वर्ग आज मजदूर दिवस को उन हालतों में मना रहा है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो। पुरे संसार की मानवता कोरोना रूपी भयंकर त्रासदी का सामना कर रही है और इस विपदा का विपरीत और बुरा प्रभाव जितना श्रमिक वर्ग पर पड़ रहा है और या फिर पड़ने वाला है उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है, वर्तमान और भविष्य में पूंजीवाद और शोषण की दोहरी मार को झेलने के लिए संगठित होकर लड़ने की प्रेरणा देने वाला दिन अगर है तो वह आज ही का दिन है। कोरोना काल में अगर कोई विस्थापित होकर भूखा प्यासा हजारों किलोमीटर पैदल चला है तो वह श्रमिक ही है।